Wednesday 19 March 2014

विश्व शांति

 मलय समीरा मौसम
      आदमखोर दिखाई देता है |       
' विश्व शांति ' का नारा ,
       कमज़ोर दिखाई देता है ||
धर्म - धर्म से टकराता है ,
       सीमा - सीमा को बेध रही |
आततायी शक्तियाँ एकजुट हो ,
      मानवता को है छेद रही ||
कहीं बमों का धुआँ उठे ,
       कहीं छुरी तलवार चले |
रक्त रंजित हुई धरा ,
        पग - पग पर आतंक मचे ||
धरती के एक अभीष्ट टुकड़े ने ,
         तालिबान का निर्माण किया  |
कौमी गद्दी की जिज्ञासा ने ,
          आतंकी लिट्टे को जन्म दिया ||
दिल दहलाती हैं करतूतें 
           हिंसा करने वालों की |
आँखों में आँसू लाती है ,
           हालत मरने वालों की ||
अब तो हिंसा , 
           मानवता से टकराती है |
' विश्व शांति ' का उपहास ,
            क्षण - क्षण वो करवाती है ||
हमने सालों - साल   खो दिए,
             श्वेत कपोत उड़ाने में |
' विश्व शांति ' का परचम ले ,
             इस जग को समझाने में ||
पर , अहंकार की मरुभूमि ,
             प्रेम - पुष्प न खिलने देती |
आरोपों - प्रत्यारोपों की डोरी ,
             बंधुत्व को न बँधने देती ||  
जन - जन की अभिक्षिप्त वाणी  ,
             आह्वान करती मानवता  का |
शांति बीज के बोने वालों , 
              अब समय नहीं है सोने का ||
अब , इन कोहराम भरी रातों का 
                          ढलना ज़रूरी है  |
घोर तिमिर में एकता की मशाल का
                           जलना ज़रूरी है ||

No comments:

Post a Comment