अभिव्यंजना
अंतर्मन में उद्वेलित भावों को अभिव्यंजित करने का सूक्ष्म प्रयास.....
Tuesday, 11 March 2014
एक कोशिश रोशनी की ओर
गुमनामियों के अँधेरे से ,
निकलने को है बेकरार |
ह्रदयाकाश के शुभ्र प्रकाश में ,
कुसुम – सा खिलने की दरकार ||
काश ! आए फरिश्ता कोई ,
तोड़ने तम की दरो – दीवार |
यही सोच , होकर आस्थावान ,
मानव - मन करे करुण पुकार ||
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