Tuesday 11 March 2014

मन का गलियारा

                      

दिल कहता है इस गगन का नहीं कोई छोर ,
स्वछंद हूँ पर उड़ जाऊँ किस ओर |
आकाक्षाओं के गलियारे में हूँ गुम ,
उम्मीदों की मिटती नहीं है धुन |
दुविधा के रथ पर हो सवार ,
कैसे पाऊँ गगन का वह द्वार |
जहाँ से प्रियतम की मिले आगोश ,
कर दे उन्मुक्त गगन को भी मदहोश ||


2 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर मधुर अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई इस सुन्दर रचना हेतु

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  2. प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार

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