आसमान में उड़े गुलाल ,
पिचकारी की चले फुहार |
ऐसे में एक विरही मन को ,
अपने प्रियवर की है दरकार ||
सावन बीता आया फागुन ,
बीती वासंती रस की धार |
पर तुम न आए प्रियतम ,
परदेशी बन क्यों फिरी निगाह ||
अब तो आओ साजन मेरे ,
क्षण - क्षण दिल की यही पुकार |
बाट निहारू उस दर प्रियतम ,
जहाँ सुनूँ तेरी कोमल पग - चाप ||
आलिंगन में भर कर मुझको ,
प्रेम रंगों का करो मिलान |
प्रेमाश्रय का दे कर उपहार ,
उदन्य हृदय में भरो ऊजास ||
प्रिय रंग की लाली में रंग ,
लज्जा का मैं करूँ श्रृंगार |
मेरे लालायित विरही मन को ,
अपने प्रियवर की है दरकार ||
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