Sunday 22 May 2011

ज़ख्मी दिल

 प्रतीक्षा में
भावों की अभिव्यक्ति शब्दातीत है ,
 हर क्षण जीवन का यूँ ही व्यतीत है |
यह भाव भी तुम हो ,
भावों में छुपे घाव भी तुम हो |
हर पल तुम्हें बुलाती हूँ ,
हर साँस एक आह बन पुकारती है  |
काश ! कोई आवाज़ तो सुनते ,
मेरे छुपे घाव तो गिनते |
रोज़ कोई नई बात पूँछते हो ,
ज़ख्म की गहराई को टटोलते हो ,
ज़ख्म के भरने की आशंका से
फिर उसे कुरेदते हो |
ज़ख्म भरता है तो निशान छोड़ता है ,
मेरा ज़ख्म तो मीठा अहसास देता है |
दुनिया में अब न कोई सहारा है ,

बस एक ज़ख्म ही हमारा है |

2 comments:

  1. भावों की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ! अति सुन्दर

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  2. दिल की भावनाओं को इस से और अच्छे शब्दों में नहीं लिख सकते.... पढ़ के बहुत अच्छा लगा.....

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