काम आया न मेरे महावर का रंग ,
गोरे हाथों में मेंहदी लगी रह गई |
आके प्रीतम ने घूँघट न खोला मेरा ,
मुख पे चूनर पड़ी की पड़ी रह गई ||
मेरी पूजा में क्या कुछ कमी रह गई ,
शीष मंदिर में जाकर झुकाया सदा |
फिर पिया से हमारा मिलन न हुआ ,
मन की इच्छा दबी की दबी रह गई ||
मोह माया की चूनर थी मुख पर पड़ी ,
काम की आँधी ने उसको उड़ाया सदा |
युग बीत गए तुम न आए पिया ,
मन में आशा जगी की जगी रह गई ||
छोड़ जग को पिया तेरा सुमिरन किया ,
तेरी छवि को है दिल में बसाया सदा |
फिर पिया की नज़र न हम पर पड़ी ,
मन की डोली सजी की सजी रह गई ||
गोरे हाथों में मेंहदी लगी रह गई |
आके प्रीतम ने घूँघट न खोला मेरा ,
मुख पे चूनर पड़ी की पड़ी रह गई ||
मेरी पूजा में क्या कुछ कमी रह गई ,
शीष मंदिर में जाकर झुकाया सदा |
फिर पिया से हमारा मिलन न हुआ ,
मन की इच्छा दबी की दबी रह गई ||
मोह माया की चूनर थी मुख पर पड़ी ,
काम की आँधी ने उसको उड़ाया सदा |
युग बीत गए तुम न आए पिया ,
मन में आशा जगी की जगी रह गई ||
छोड़ जग को पिया तेरा सुमिरन किया ,
तेरी छवि को है दिल में बसाया सदा |
फिर पिया की नज़र न हम पर पड़ी ,
मन की डोली सजी की सजी रह गई ||
( उस आलौकिक को दिल से गुहार जो विकारों से मुक्त कर एकरूप हो
जाए | )
आपकी रचना ने महादेवी वर्माजी के छायावाद में विचरण करवा दिया ! सुंदर अभिव्यक्ति अंजू मैम.
ReplyDeleteजब मिलन से ज्यादा वियोग भाने लगे
ReplyDeleteविरह का दर्द आत्मा में आनंद जगाने लगे
प्रतीक्षा के पल संजोग के क्षणों पे भारी पड़ें
...
प्रेम की कैसा अद्भुत स्वप्निल संसार ये प्रिये