फ़साना बन गया , वो तेरा मुस्कुराना |
तेरी आँखों की मस्ती में , मेरा डूब जाना ||
निश्छल आँखों में बसा अपनत्व ,
जब ओट से पुकारता है |
आँखों के कोनलों से फिसल ,
गोलक के शून्य से मुसकुराता है
तब मन विह्वल हो ,
परम तत्व को पुकारता है ||
तेरी यही अदा , बना इक तराना ,
तेरी आँखों की मस्ती में , मेरा डूब जाना ||
काफिर थे हम ,
न घर था न ठिकाना ,
तेरी रहमोनज़र से ,
आँखों का मिला इक आशियाना |
बसी हैं तेरी आँखें ,
जब से मेरी आँखों में ,
हर दर्द करे किनारा ,
ये जग लगे बेगाना |
डूबकर इनमें ऐ साकी ,
स्वर्ग का द्वार लगे पुराना |
तेरी ऐसी ही हस्ती पर फिदा है ज़माना ,
तेरी आँखों की मस्ती में , मेरा डूब जाना ||
निश्छल आँखों में बसा अपनत्व ,
जब ओट से पुकारता है |
आँखों के कोनलों से फिसल ,
गोलक के शून्य से मुसकुराता है
तब मन विह्वल हो ,
परम तत्व को पुकारता है ||
तेरी यही अदा , बना इक तराना ,
तेरी आँखों की मस्ती में , मेरा डूब जाना ||
काफिर थे हम ,
न घर था न ठिकाना ,
तेरी रहमोनज़र से ,
आँखों का मिला इक आशियाना |
बसी हैं तेरी आँखें ,
जब से मेरी आँखों में ,
हर दर्द करे किनारा ,
ये जग लगे बेगाना |
डूबकर इनमें ऐ साकी ,
स्वर्ग का द्वार लगे पुराना |
तेरी ऐसी ही हस्ती पर फिदा है ज़माना ,
तेरी आँखों मस्ती में मेरा डूब जाना ||
laukik aur pralaukik prem ke madhy .......... sunder rachna
ReplyDeleteछायावाद के रंग में सराबोर अल्हड़ प्रेम ! रचना में गति और प्रवाह है जो मन को बांधे रखता है|
ReplyDeleteअश्क के पलक की कोर तक आते - आते
ReplyDeleteराज ए दिल ज़ुबां की नोक तक आते - आते
नामालूम कितनी सदियाँ बीत गई
अपनी मुहब्बत ए सनम जताते - जताते