Tuesday 7 June 2011

दिल का फ़साना

फ़साना बन गया , वो तेरा मुस्कुराना |
तेरी आँखों की मस्ती में , मेरा डूब जाना ||
      निश्छल आँखों में बसा अपनत्व ,
      जब ओट से पुकारता है |
      आँखों के कोनलों से फिसल ,
      गोलक के शून्य से मुसकुराता है
      तब मन विह्वल हो ,
      परम तत्व को पुकारता है ||
तेरी यही अदा , बना इक तराना ,
तेरी आँखों की मस्ती में , मेरा डूब जाना ||
      काफिर थे हम ,
      न घर था न ठिकाना ,
      तेरी रहमोनज़र से ,
      आँखों का मिला इक आशियाना |
      बसी हैं तेरी आँखें ,
      जब से मेरी आँखों में ,
      हर दर्द करे किनारा ,
      ये जग लगे बेगाना  |
      डूबकर इनमें ऐ साकी ,
      स्वर्ग का द्वार लगे पुराना |
तेरी ऐसी ही हस्ती पर फिदा है ज़माना ,
तेरी  आँखों मस्ती में मेरा डूब जाना ||

3 comments:

  1. laukik aur pralaukik prem ke madhy .......... sunder rachna

    ReplyDelete
  2. छायावाद के रंग में सराबोर अल्हड़ प्रेम ! रचना में गति और प्रवाह है जो मन को बांधे रखता है|

    ReplyDelete
  3. अश्क के पलक की कोर तक आते - आते
    राज ए दिल ज़ुबां की नोक तक आते - आते
    नामालूम कितनी सदियाँ बीत गई
    अपनी मुहब्बत ए सनम जताते - जताते

    ReplyDelete