Sunday 14 August 2011

भारत माँ की व्यथा

कतरा - कतरा रक्त का  
                        बहा के पाया था हमने जिसे |
आज वही है दर - बदर , 
                        पूछती शहीदों का हमसे पता ||
कल विदेशी बेड़ियों में थी जो जकड़ी हुई ,
                       आज अपने ही सपूतों के ज़ख्मों से घायल हुई |  
आतंक भ्रष्टाचार ने ,
                        उसकी छाती पर है तांडव किया |
जाति - पाति के भेद ने ,
                        गरिमा को सदा कलंकित किया |
पलायनवादी प्रवृत्ति ने ,
                         ममता को क्षत - विक्षत किया |
और धरा की निर्धन प्रजा को ,
                          मँहगाई ने दण्डित किया ||
हे ! धरा के वीर सपूतों ,
                         देशभक्ति का भाव भरो |
रक्तरंजित हुई धरा को ,
                         स्वर्ण सरसिज से विहसित करो || 

3 comments:

  1. भावों की गहन अभिव्यक्ति सुंदर अतिसुन्दर बधाई

    ReplyDelete
  2. सार्थक रचना, सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.


    "शुभ दीपावली"
    ==========
    मंगलमय हो शुभ 'ज्योति पर्व ; जीवन पथ हो बाधा विहीन.
    परिजन, प्रियजन का मिले स्नेह, घर आयें नित खुशियाँ नवीन.
    -एस . एन. शुक्ल

    ReplyDelete
  3. आप सभी के प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद !
    दीपों की अवली में
    सौहार्द का संदेश हो |
    वाणी की मिठास से
    एकत्व का प्रकाश हो ||
    आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete