इस गुलिस्तां में तब्दीली हो रही,
नैतिकता धुआँ, अशिष्टता रोबीली हो रही|
दिल टूट जाता है मंज़र देखकर,
परवरिश के दरख़्तों पर ख्वाहिशें नशीली हो रही||
जीवन के समस्त गुणों,
ऐश्वर्यों, समृद्धियों तथा वैभव की आधारशिला चरित्र तथा नैतिकता है| समय के
तीव्रगामी कदमों के साथ नैतिक मूल्यों का ह्रास तथा अशिष्टता का पाश मज़बूत होता जा
रहा है| अशिष्टता क्यों पनप रही है ? इस पर गंभीर मंथन की आवश्यकता है| अशिष्टता
के लिए हम युवा पीढ़ी को भी पूरी तरह दोषी नहीं ठहरा सकते| इसके लिए परिवार तथा
सामाजिक वातावरण के साथ मीडिया भी जिम्मेदार है| माता-पिता अपनी संतान से कोई-ना-कोई
उम्मीद रखते हैं| जो मुकाम माता-पिता हासिल नहीं कर पाए; उसमें अपने बच्चों का
भविष्य देखने का अरमान; लगभग सभी अभिभावकों का होता है| इसमें कोई बुराई तो नहीं
है परंतु महत्वाकांक्षा का जो बीज वह अपने बच्चों में अंकुरित करना चाहते हैं उसका
रोपण तथा पोषण करते हुए उसकी परवरिश में नैतिक मूल्यों को कहीं न कहीं अनदेखा कर
देते हैं| पूंजीवादी मानसिकता से ग्रसित अभिभावक अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर
तथा वैज्ञानिक जैसे प्रतिष्ठित पद प्राप्त करने का मार्गदर्शन तो करते हैं परंतु श्रेष्ठ
नागरिक बनाने की संकल्पना उनके मन-मस्तिष्क में ही विलीन हो जाती है| मीडिया भी
बच्चों पर गहरा प्रभाव डालता है| फिल्मों तथा टी॰वी॰ पर दिखाए जाने वाले बिग बॉस,
रोडीज जैसे अनेक कार्यक्रम अभद्र भाषा व व्यवहार की सीख देते हैं| आज कक्षा का
केंद्र वह छात्र होता है जो अपनी अशिष्टता से मनोरंजन का साधन बनता है| वह ‘कूल पर्सनैलिटी’ की संज्ञा से नवाज़ा जाता है| कुछ सामाजिक तथ्य यह प्रमाणित करते हैं
कि बच्चों में नैतिकता का अभाव दिन – प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है | अभी हाल ही में
एक उत्कृष्ट भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (IIT) से उत्तीर्ण युवा जो कि प्रतिष्ठित
बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत था; उसने अज्ञात कारणों से आत्महत्या कर ली| उसने
व्यावसायिक क्षेत्र में तो सफलता हासिल कर ली परंतु जीवन की विकट परिस्थितियों का
सामना करने का हौसला वह नहीं सीख पाया या कहिए कि उसे सिखाया नहीं गया और वह जीवन
से हार गया| रक्षा अनुसंधान एवं विकास
संगठन (डी॰आर॰डी॰ओ॰) की इकाई ब्रह्मोस की एयरोस्पेस यूनिट में कार्यरत 27 वर्षीय
वैज्ञानिक को भारत के अति महत्वपूर्ण ब्रह्मोस से जुड़ी संवेदनशील जानकारी को
पाकिस्तान एवं अमेरिका से साझा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया| यह वैज्ञानिक
रुड़की जैसे एक प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से स्वर्ण पद प्राप्त कुशाग्र
छात्र था; उसे युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था| अभिभावकों की
अपेक्षाओं में खरा उतरने वाला युवा आई॰एस॰आई॰ द्वारा हनीट्रैप जैसे मामले में फँस
जाता है| अकल्पनीय तो यह है कि माता-पिता उसके इस कृत्य से अनभिज्ञ थे| कमी कहाँ
रह गई ? यह विचारणीय है|
आज युवाओं का आहार, विहार
तथा विचार दूषित होता जा रहा है उनमें सही-गलत परखने की क्षमता खोती जा रही है| मनमोहक आकर्षणों में फँसकर
दिग्भ्रमित युवा अपनी महत्वाकांक्षा को तो फलित कर लेते हैं परंतु अधूरी परवरिश उन्हें
पथभ्रष्ट कर देती है| तीन साल का बच्चा अनभिज्ञ
होता है| जब वह संस्कार, नैतिकता व शिष्टता के बारे में जानने योग्य होता है तो उसे स्कूल
भेजा जाता है। उसके बाद वह ट्यूशन पढ़ने के लिए चला जाता है। जब तक वह माता-पिता
के पास आता है तो थककर सोने के लिए चला जाता है। अभिभावक कुछ पूछने की कोशिश भी
करें तो वह यह कहकर टाल देता है कि अभी थक चुका हूँ। दूसरी सुबह फिर वही दिनचर्या शुरू
हो जाती है। बच्चा क्या कर रहा है, क्या पढ़ व सीख रहा है, हमें मालूम ही नहीं होता। समय के साथ वह इतना बड़ा हो जाता है कि वह
संस्कारविहीन हो जाता है। शिष्टाचार की उससे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती| युवाओं का
रुष्ट और रूखा व्यवहार, बड़ों के प्रति अनादर, कुतर्क व मनमानी यह सब दर्शाता है कि युवाओं में नैतिक मूल्यों का
स्तर किस हद तक गिर चुका है। आज परवरिश के मायने बदल
गए हैं| अच्छा कमाएँ, अच्छा खाएँ, जीवन में कभी पैसे की कमी न आए; यही सबका ख्वाब
होता है| बच्चा पैसे कमाने की ललक में अनैतिकता के भँवर में फँसता चला जाता है|
स्वामी दयानंद जी ने कहा था- "हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके|" इन आदर्शों को भूल हम केवल भौतिक उन्नति की प्रतिस्पर्धा में भावी पीढ़ी को झोंक रहे हैं| उनमें नैतिक मूल्यों के उत्थान हेतु हमारे प्रयास नगण्य हैं| एक बारहवीं कक्षा का छात्र अपनी ही माँँ तथा बहन का कत्ल कर देता है; कभी आक्रोश में अपने ही अध्यापक पर हथियार उठा लेता है तो परीक्षा स्थानांतरित करने हेतु छोटे से बच्चे का कत्ल कर देता है| ऐसे कितने ही उदाहरण देखने को मिल जाएँँगे, जो यह दर्शाते हैं कि युवा वर्ग खुद में नैतिक मूल्यों को कितना गिरा चुके हैं| दुख तो इस बात का होता है कि शिष्टाचार, संस्कार व नैतिकता की उन्हें पहचान ही नहीं और न ही इसको मानने को तैयार हैं| यदि अध्यापक तथा अभिभावक उन्हें जीवन- मूल्यों की शिक्षा देने का प्रयास करते हैं तो वह मॉरल लेक्चरिंंग' कहकर किनारा कर जाते हैं| आज की युवा पीढ़ी तो पागल हाथी की तरह नैतिकता व संस्कारों को भुलाकर अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को रोंदते हुए चली जा रही है| वे इस बात से बेखबर हैंं कि जब वह ज़मीन पर गिरेंगे तो क्या हाल होगा? यह सिर्फ नैतिक मूल्यों की कमी के कारण ही हो रहा है जोकि अधूरी परवरिश का ही परिणाम है|
युवाओं की वर्तमान
परिस्थिति से यह स्पष्ट है कि अभिभावकों को ख्वाहिशों के अतिरिक्त उनके चारित्रिक
उत्थान पर भी विशेष ध्यान रखना चाहिए| कहीं ऐसा ना हो कि भौतिक उन्नति के भँवर में
गोते खाते-खाते हम उन्हें जीवन जीने की कला सिखाना ही भूल जाएँ और वे जीवन में
किसी असफलता से अवसाद के शिकार हो जाएँ|
ख्वाहिशों के समंदर में,
किश्तियाँ कहीं गुमराह न हों|
उँगलियाँ उठें आप पर,
परवरिश आपकी बदनाम न हो||