Friday 18 November 2011

भूली बिसरी यादें

   मुड़कर ना देखने वाले एक बार तो देखा होता,
        जाने से पहले , ओ मेरे साथी ! एक बार तो सोचा होता ,
         रस्मों रिवाज़ों को तोड़कर जो मैं तुमसे मिलती रही ,
         ना दोगे साथ एक बार तो जताया होता ,
         तुम्हें चाहने की सज़ा तुमने ही तो दी है ,
मेरे आँसुओं को तुमने एक बार तो देखा होता ,
शिकवा करें क्या उनसे, जिनसे वफा की उम्मीद न हो ,
काश ! तुम्हें चाहने से पहले इक बार तो दिल को रोका होता ||
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वक्त से पहले मुलाकात कहाँ होती है ,
वक्त का खेल है मिलते हैं जुदा हो जाते हैं |
वक्त की बात करो , वक्त खुदा होता है ,
वक्त के हाथ में , हर वक्त छुपा होता है ||
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ज़माना ये किस मोड़ पर आ गया है ,
सितारों से आगे बशर आ गया है |
अजब सनसनाहट सी है ज़िंदगी में ,
किधर का मुसाफिर किधर आ गया है ||